अवर्णनीय
- Mast Culture

- Oct 9
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By Samruddhi Chunariya
मन कि या बैठु और लि खूं तुम्हें,
कि सी का गज पर पि रो ऊ तुम्हें...
लि खूं तुम्हा रे अंगों की महक,
और तुम्हा री नजर के नजरा ने।
कि मैं,
चा लू तुम्हा री तेरी चा ल और लि खूं तुम्हा रा अंदा ज,
उता रू तुम्हा री नजा कत और वर्णू तुम्हा रा ना म।
पर क्या करूं मैं,
चा हा तुम्हें कमल सा वर्णू
पर वह भी मुरझा जा ता है,
क्या मैं उसे चां द से वर्णू?... जो सूर्य का तेज पता है..
फि र...चा हा तुम्हें सूर्य सा वर्णू
पर उसमें इतना तेज कहां ....
चा हा तुम्हें स्वर्ग से वर्णू
पर उससे ज्या दा वैभव है तेरी पा यल का !
चा हा तुम्हें ब्रह्मां ड से वर्णू..... पर वह भी इतना गहन कहां ?
बो ल प्रि या तुझे कि सी से वर्णन इस लो क में इतना वैभव कहां ...?
By Samruddhi Chunariya



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