तिरिस्कार
- Mast Culture

- Oct 10
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By Tejeshwar Singh
एक तिरिस्कार से शुरू हुई मोहब्बत ने
मेरे हाथों का हुनर बदल दिया
उसके गले लगने पर तेरी पेशानी पर शिकन ना थी
और हमने तुझे चाहने का इरादा बदल दिया
पर तेरी आज़माइश एक जगह रुकने वाली कहाँ थी
तूने इस्तेमाल किया , फ़िर उसे भी बदल दिया
मेरे कांधे पर पड़ी तेरी ज़ुल्फों की गवाही भी थी
पर मोहब्बत की अदालत में तूने वफ़ा और दौलत को बदल दिया,
और ये ग़मज़दा रहने कि कहानी कुछ ऐसे शुरू हुए
जैसे बीच मछधार में कश्ती ने साहिल बदल दिया
ताश के पत्तों की तरह बंट गई ज़िंदगी मेरी,
जैसे एक भरी महफ़िल में रानी ने राजा बदल दिया।
By Tejeshwar Singh



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