बूढ़ा-बरगद
- Mast Culture

- Oct 9
- 1 min read
By Sangeeta Digvijay Singh
बूढ़ा - बरगद दाढ़ी वाला,
सदियों का मौन व्रत
खंडित कर बोल पड़ा-
"मां का आंचल मैला होगा
घोसलें बिखरेंगे,
यूं होगी बदनाम सभ्यता
और काल भी रूठेगा,
नदियां सूखेगीं,पर्वत रोएंगे,
सूना होगा हर एक कोना "।
हे मनु के वंशज-
भविष्य के प्रपौत्र को क्या
प्लास्टिक का संग्रहालय
उपहार स्वरूप भेंट करोगे ?
प्रकृति के विकराल नर्सिंग स्वरूप व प्रकोप
से भयभीत होना होगा,
जल-चर,नभ-चर, थल-चर के
प्रति संवेदनाओं को जगाना होगा ।
प्रकृति के पारिस्थितिक तंत्र व्यवस्था
के प्रति संरक्षण भाव अपनाना होगा -
मौन सन्यासी बोल पड़ा-धरती सबकी है,
अभी नहीं तो कभी नहीं,
संकल्प पत्र में
हृदय से सृजन का प्रण दोहराना होगा ।
नवग्रह की सुंदर बाला के चित्रकार को नमन कर,
हम सबको रंग-बिरंगे पुष्पों से अलंकृत कर,
हरियाली की चुनरी धरती-माँ को पहनानी होगी।
By Sangeeta Digvijay Singh



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