भारत-रत्न
- Mast Culture

- Oct 9
- 1 min read
By Sangeeta Digvijay Singh
स्वतंत्रता सेनानी, अहिंसा वादी
लाल को शत-शत नमन,
पंथ-जाति में नहीं देश-भाक्ति में सराबोर,
संघर्ष पथ पर चलकर
शास्त्री उपाधि हृदय से स्वीकारा ।
नौ जून उन्नीस सों चौसठ में
द्वितीय प्रधान पद जब स्वीकारा ।
राह सरल नहीं था,
किंतु लाल विचलित भी नहीं था ।
देश खाद्यांश की कमी से जूझ रहा था,
दूसरी तरफ दुश्मन आंख दिखा रहा था,
लाल की ललकार अगर सीमा पर बढ़े,
तो हम भी सीमा पर ही खड़े ।
अन्नदाता, देश-रक्षक का जय घोष किया,
विजय श्री का ताज पहना कर
विकास करने का उद्घोष किया ।
अठ्ठारह माह के कार्यकाल अवधि में ही,
नियति ने लाल का हृदय-गति रोककर
दिल्ली के सिंहासन पर वज्र-घात किया,
जन-जन की करुण पुकार
उठो लाल,उठो लाल,
देखो कृषि जगत में क्रांति छा गई है
विश्व पटल पर भारत
रवि, खरीफ फसल का निर्यात पर निर्यात कर रहा,
जल-थल-वायु में सैन्य शक्ति
प्रतिपल बाज की दृष्टि से
आत्म-रक्षा,सुरक्षा के लिए देख रहा
कौन कहता है, चिर निद्रा में विलीन हो गए
कुशल नेतृत्व सादगी,ईमानदारी,
स्पष्ट नीति के मिसाल,
मशाल के लौ में आज भी प्रज्वलित है,
चिरकाल तक गूंजेगा
By Sangeeta Digvijay Singh



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