कवि
- Mast Culture

- Oct 9
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By Samruddhi Chunariya
मेरे घर ना कभी तो मैं रंग मि लेंगे
ना कभी घुंघरू मि लेंगे
मि लेगा ना को ई वा द्य तुम्हें
पर
तुम्हें खूब कि ता बें मि लेगी
हंसते चेहरे के पी छे सि सकि यां दि खेगी
मि लेगी कई इमा रतो की नी व तुम्हें,
प्रेमी के प्रेम की गा था मि लेगी
दि खेंगे तुम्हें रूप हंसी के कई
सी मा नी तू में अनंतता मि लेगी
मि लेगा ना कभी घुंघरू तुम्हें पर हाँ
तुम्हें कई कलम सच्चा ई की मि लेगी
मि लेगा ना कभी शस्त्र तुम्हें पर शस्त्र उठा ने की प्रेरणा मि लेगी
By Samruddhi Chunariya



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