Navratri - Live Within
- Mast Culture

- Oct 10
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By Vaishnavi Holey
मुझेमु झेचुभचु ती है वो चुप्चुपी ,
जो नज़रों से बयाँ की जा ती है।
सजा या आँगन मि ट्टी की मूरमूत से,
क़ा ति ल नज़रों से औरत मा री जा ती है।
कौ न गि नता है वो ता ने,
जो सुनासुनाने वा ले कसते हैं।
आँखों से ना पते हैं बदन सा रा ,
हो ठों पे जयका रे हो ते हैं।
नौ दि न, नौ रंग, नौ दुर्गा —र्गा
क्या सि र्फ़ एक त्यो हा र है हमा रा ?
ना री को सम्मा न देना भी तो
कि सी चढ़ा वे का ना म हो गा ।
छप्पन भो ग की था ली माँ को ,
पचपन में भी है मंज़ूरज़ू।
बस व्यंजनों की गि नती करने को
हो हा थ में बि टि या की कलम ज़रूर।
हलवा -पूरीपूरी का करेगा का म,
जब बेटी से हो गी पि ता की शा न।
हो मर्दन भी तर के महि षा सुरसु का ,
आप नवरा त्रि सुनेंसुनें, मैं कहूँ वरदा न।
By Vaishnavi Holey



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