Shadow of God's Memories
- Mast Culture

- Oct 9
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By Akash Kumar Mishra
मेरी रात शुरू होती है तेरी यादों को लेकर,
फिर नींद किस बात पर आए?
भुलाना चाहता हूँ हर चीज़ को
तेरा, जिससे मुझे प्यार है “मतलब था”
तेरी बातें, तेरी आँखें, तेरी ज़ुल्फ़ें, तेरी मुस्कान,
तेरी पहचान, तेरा नाम, तेरा गाँव,
तेरा जिस्म, तेरे अधर, तेरी रूह, तेरी पलकों के साये।
हर वो चीज़ जो तुझसे जुड़ी हो,
एक-एक कर के मिटाया तो भी ज़माने लग जाएंगे,
सब भुलाने से पहले हम थकाने लग जाएंगे।
मैं शाम शुरू होते ही
तुझे याद न करने की कोशिश में लग जाता हूँ,
और उसी बहाने तेरी यादों में खो जाता हूँ।
फिर दुनिया वाले भी मुझे साथ देने लगते हैं
सन्नाटा, शांति और ख्व़ाब देने लगते हैं,
चाँद भी कसर नहीं छोड़ता मुझे चिढ़ाने को,
याद दिलाता है तेरी आँखें,
मुझे तड़पने दो — वो जलता है
ज़ोर तेरा नूर पाने को।
कमबख़्त…
ख़ुद जल कर मुझे राख कर देता है,
अपने उजाले में मेरे सपने साफ़ कर देता है,
तुझे न देखने की हर कोशिश वो राख कर देता है।
मैं भूलूँ तो कैसे भूलूँ तुझे,
और पाने का चाह भी अगर किया तुझे वापस,
तो मन्नत माँगू किससे?
हर मंदिर, हर दरगाह, हर चौखट
तो मैं घूम आया था पहली दफ़ा
दूसरी बार वही ख़्वाहिश तो
पूरा ख़ुदा भी नहीं करेगा,
वो मुझे फिर से बरबाद करने को
मुझे हवाले तेरा नहीं करेगा।
अब मुझे खोना होगा भीड़ में इस दुनियादारी के,
ये रूहानी, ख़यालाती, ख़्वाहिशें, तरन्नुम
मेरे काम के न रहीं।
मोहब्बत तो ज़िंदा रही
दर्द-ए-दिल में ज़ख़्म की तरह,
पर ज़ख़्म देने वाला सनम न रहा।
क़समें, वादे, बातें, प्यार, इश्क़, क़यामत,
इबादत, इजाज़त — सब धरा रह गया,
हम खड़े रहे… वो हमसफ़र
मुझे अलविदा कह गया।
By Akash Kumar Mishra



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