"इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर"
- Mast Culture

- Oct 9
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By Yash Tiwari
अब ना आस लगा किसी अवतार से,
ना न्याय किसी दरबार से।
ख़ुद उठ, ख़ुद बोल, ख़ुद लड़ —
यही मुक्ति है इस अंधकार से।
आस ना तू जोड़
कलयुग है ये घनघोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई
आएगा माखन चोर
वासना से तृप्त धरती
कौन यहाँ सच्चा है
ग़ैरों की अब क्या ही कहूँ
अपना ही ना कोई अच्छा है
ख़ुद बचा सम्मान अपना
मत मचा अब शोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई
आएगा माखन चोर
सत्ताधारी पुतले बने
न्याय अंधा हो गया
भ्रष्टता से इस कदर
कानून गंदा हो गया
बन सहारा आएगा
ये आस दे अब छोड़
इज़्ज़त बचाने ना कोई
आएगा माखन चोर
आस में बैठे रहेंगे
राम न यहाँ आएंगे
ना आके पांडव यहाँ
महाभारत रचाएंगे
अंधेरा न छिप पाएगा
ना हो पाएगी भोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई
आएगा माखन चोर
पल पल चिता जलती रहेगी
सराफ़त विश्वास की
हम सोचते रह जाएंगे
दरिंदों के विनाश की
जौहर में रहेगी जलती कोई
देखेगा ना तेरी ओर
इज़्ज़त बचाने ना कोई
आएगा माखन चोर
बहरी अदालत ना यहाँ
चीख़ें तेरी सुन पाएगा
मर भी जाएगी तो फिर भी
न्याय ना दिलवाएगा
हाथ जो तुझपे उठे अब
ख़ुद तू उनको तोड़
इज़्ज़त बचाने ना कोई
आएगा माखन चोर
By Yash Tiwari



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