“मैंने शव को जाते देखा है”
- Mast Culture

- Oct 9
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By Yash Tiwari
हर साँस में उम्मीदें टूटी, हर आँख में डर था,
ज़िंदगी का मोल जैसे बस इक धड़कन भर था,
हर वार्ड में चीखों का मेला, हर आंख में टूटा हुआ सिलसिला,
ज़िंदगी से आस गंवाते देखा है, मैंने शव को जाते देखा है।
मैंने अस्पताल में कई रातें बिताई हैं
मैंने शव को जाते देखा है
किसी रोती हुई माँ को उसका
प्यारा बेटा गंवाते देखा है
देखा है मैंने उम्मीदों का टूटना किसी का
धीरे-धीरे साँसें छूटना किसी का
इंजेक्शन से डरता मासूम बच्चा कहीं
तो किसी बुज़ुर्ग को आस लगाते देखा है
मैंने शव को जाते देखा है
देखा है किसी पत्नी का सिन्दूर उजड़ते हुए मैंने
देखा है किसी पिता को लड़ते हुए मैंने
देखा है किसी को बिछड़ते हुए मैंने
किसी को रुदन गीत गाते देखा है
मैंने शव को जाते देखा है
वो ICU के बाहर इंतज़ार किसी का
वेंटिलेटर से जुड़ना बार-बार किसी का
नम आँखों में हार किसी की
फिर भी उम्मीदें जगाते देखा है
मैंने शव को जाते देखा है
हर बीप पर काँपता चेहरा
OT के बाहर देते पहरा
गुज़रती नर्स से पूछता हाल
"कैसा है?" — ये करता सवाल
सीने में दर्द छिपाते देखा है
मैंने शव को जाते देखा है
कभी यहाँ ज़िंदगी वापस लौट आती है
कभी मौत बिना दस्तक दिए चली जाती है
कभी दवा से ज़्यादा दुआ असर पाती है
बस रोज़ कोई नई आँखें आस लगाती हैं
थमती आँखों से डॉक्टर को आते देखा है
मैंने शव को जाते देखा है
By Yash Tiwari



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